कथावाचक जया किशोरी ने वृंदावन में प्रेमानंद महाराज से मुलाकात की है। इस दौरान प्रेमानंद ने 'मच्चित्ता मद्गतप्राणा बोधयन्तः परस्परम्...कथयन्तः, च, माम्, नित्यम्, तुष्यन्ति, च, रमन्ति, च…तेषाम्, सततयुक्तानाम्, भजताम्, प्रीतिपूर्वकम्...ददामि, बुद्धियोगम्, तम्, येन, माम्, उपयान्ति, ते' श्लोक कहा। इसका अर्थ है, "जो मुझमें चित्त लगाकर, मेरी चर्चा करने में संतुष्ट है, मैं उसे बुद्धियोग प्रदान करता हूं।"