कहते हैं कि 250-300 साल पहले चलने-फिरने में कमज़ोर वाराणसी के एक पुजारी ने आश्रम में आम का पेड़ लगा रखा था। बच्चे पत्थर मारकर आम तोड़ते तो वह डंडा लेकर उनके पीछे भागते। लोग उसे 'लंगड़े वाला आम' कहने लगे। तत्कालीन राजा तक यह बात पहुंची तो उन्होंने वह आम मंगाकर चखा और उसका नाम 'लंगड़ा आम' रख दिया।